नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में जहरीले कफ सिरप से 26 बच्चों की मौत के बाद अब सरकार दवा जांच व्यवस्था को पूरी तरह बदलने जा रही है। दवाओं की मिलावट और गुणवत्ता की जांच अब माइक्रो लेवल पर होगी। इसके लिए करीब 211 करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार किया गया है, जिसे राज्य औषधि सुरक्षा और नियामक सुदृढ़ीकरण योजना (SSDRS 2.0) के तहत केंद्र सरकार को भेजा गया है। इस योजना के तहत जिलों में मोबाइल लैब के जरिये दवाओं की जांच की जाएगी, ताकि किसी भी स्तर पर मिलावटी या घटिया दवा जनता तक न पहुंचे।
अब तक दवाओं की जांच सिर्फ भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर तक सीमित थी, लेकिन अब हर जिले में ड्रग इंस्पेक्टर का स्वतंत्र कार्यालय बनाया जाएगा। इसके लिए 110 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। फिलहाल छोटे जिलों में ड्रग इंस्पेक्टर दूसरे सरकारी दफ्तरों में अस्थायी रूप से बैठते हैं, लेकिन नई व्यवस्था में उन्हें खुद का दफ्तर मिलेगा। इन दफ्तरों में आधुनिक आईटी सिस्टम, सर्वर, कंप्यूटर, रिपोर्टिंग और लाइसेंसिंग की ऑनलाइन सुविधा के साथ प्रशिक्षण हॉल भी होंगे। इससे दवाओं की सैंपलिंग, मॉनिटरिंग और जांच की रफ्तार कई गुना बढ़ जाएगी। साथ ही, नए ड्रग इंस्पेक्टर्स के पद सृजित किए जाएंगे और उनकी भर्ती भी होगी।
दवाओं की जांच को तेज और सटीक बनाने के लिए मोबाइल लैब और हैंडहेल्ड डिवाइस खरीदे जाएंगे। 4 करोड़ रुपए की लागत से ये डिवाइस ऐसे होंगे, जिनसे मौके पर ही दवा की जांच की जा सकेगी। यानी अब किसी संदिग्ध दवा के नमूने को लैब तक भेजे बिना तत्काल परीक्षण संभव होगा। वहीं, मोबाइल लैब जिलों में घूमकर दवाओं की गुणवत्ता की जांच करेंगी। अफसरों के मुताबिक, इससे फील्ड लेवल पर निगरानी मजबूत होगी और कार्रवाई में देरी नहीं होगी।
सरकार दवा जांच प्रणाली में मानव संसाधन को भी बढ़ा रही है। इसके लिए 36 करोड़ रुपए ड्रग इंस्पेक्टर, लैब असिस्टेंट, केमिस्ट और डेटा एंट्री ऑपरेटर की भर्ती और सैलरी पर खर्च किए जाएंगे। जांच से जुड़े अफसरों को नई तकनीक की जानकारी देने के लिए 2 करोड़ रुपए की लागत से प्रशिक्षण केंद्र बनाया जाएगा। यहां उन्हें दवा जांच और रिपोर्टिंग की आधुनिक विधियों का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
इसके साथ ही, राज्य की चार प्रमुख दवा प्रयोगशालाओं—भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर—को अपग्रेड किया जाएगा। इन लैबों के उन्नयन पर 50 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। नई व्यवस्था में माइक्रोबायोलॉजी और स्टेरिलिटी टेस्टिंग यूनिट स्थापित की जाएगी, जिससे यह जांचना संभव होगा कि किसी दवा में फंगस, बैक्टीरिया, मिलावट या कोई रासायनिक गड़बड़ी तो नहीं है। साथ ही, इन लैबों को NABL (नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज) से मान्यता दिलाने की तैयारी भी की जा रही है।
इस बड़े बदलाव की पृष्ठभूमि में वह दर्दनाक घटना है, जिसमें जहरीला कफ सिरप पीने से 26 मासूमों की मौत हो गई थी। जांच में सामने आया था कि सिरप में डायएथिलीन ग्लाइकॉल नामक जहरीला केमिकल मिला हुआ था, जिसने बच्चों के किडनी, लिवर और फेफड़ों को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाया। डॉक्टरों का कहना है कि यह केमिकल शरीर के अन्य अंगों को भी निष्क्रिय कर देता है, जिससे कई बच्चों का दिमाग काम करना बंद कर गया था।
इस घटना ने सरकार को दवा जांच प्रणाली की कमजोरियों की ओर ध्यान दिलाया। अब नई योजना के तहत पूरे प्रदेश में दवाओं की गुणवत्ता की निगरानी को मजबूत किया जाएगा। मोबाइल लैब, आधुनिक उपकरण और प्रशिक्षित स्टाफ की मदद से हर जिले में जांच आसान और त्वरित होगी। अधिकारियों का कहना है कि इससे न सिर्फ दवाओं की गुणवत्ता बेहतर होगी, बल्कि आम जनता का भरोसा भी लौटेगा।
राज्य सरकार का दावा है कि 211 करोड़ की यह योजना दवा सुरक्षा की दिशा में ऐतिहासिक कदम साबित होगी। माइक्रो लेवल पर जांच और निगरानी की इस नई व्यवस्था से भविष्य में किसी जहरीली या मिलावटी दवा से होने वाली त्रासदी को रोका जा सकेगा। सरकार का उद्देश्य साफ है — हर दवा सुरक्षित हो और हर नागरिक को भरोसेमंद इलाज मिले।
